मूनक्वेक्स से भूकंप तक: चंद्रमा और पृथ्वी की भूगर्भीय कविता

चांद की चांदनी में जब भी कोई स्पंदन उठता है, तो वह पृथ्वी के घोर भूकंपों की गड़गड़ाहट से बिलकुल अलग, एक कोमल सिसकी की तरह सुनाई देता है। इन मूक स्पंदनों को हम मूनक्वेक्स कहते हैं, जो चंद्रमा के भीतर छुपे तापीय और ज्वारीय तनावों की सूक्ष्म गाथा बयाँ करते हैं। जैसे मनुष्य के अस्थिनि तंतु भीतर के तापमान परिवर्तनों की परछाई संचारित करते हैं, वैसे ही चाँद की ठंडी चट्टानों में दिन-रात के तापमान अंतर की लय बनी रहती है, जिससे सतह पर क्रैक झलकते हैं और हल्की हल्की कम्पनें उठती हैं। मूनक्वेक्स की प्रकृति पृथ्वी के भूकंपों से बिलकुल भिन्न है। यहाँ न कोई विशाल प्लेटें टकराती हैं, न ज्वालामुखी की आग फूटती है, बल्कि चार सौम्य कारणों से चंद्रमा कंपकंपाता है—गहरे ज्वारीय बलों से उत्पन्न डीप मूनक्वेक्स, सतह के ठंडा होने-पर सिकुड़ाव से शैलो मूनक्वेक्स, तापीय असमानताओं से थर्मल मूनक्वेक्स और उल्कापिंडों के हल्के टकराव। हर कम्पन, चंद्रमा की चुप्पी में एक अलग स्वरलहरी जगाता है, जो उसकी भूगर्भीय कहानी के अनकहे अध्याय पढ़ाता है।
अंदरूनी आग की लपटें धीरे-धीरे ठंडी होकर चट्टानों में दरारें छोड़ जाती हैं—जिन पर हवाओं का बोझ नहीं, पर अंतरिक्ष की ठंडक का प्रहार रहता है। ये दरारें, मानो चाँद की ठुकराई हुई साँसें हों, सतह को भीतर से खींचकर हल्की कांपनों की श्रृंखला उत्पन्न करती हैं। चंद्रमा की यह धीमी सिकुड़न, उसकी निष्क्रिय कोर की निशानी है, जिसने कभी पिघले लोहे-निकेल से निर्मित चुंबकीय कवच को जीवन्त रखा था, पर अब वह भी स्थिर हो चला है| जहाँ चंद्रमा पर स्थिरता ही उसका स्वभाव बन गई, वहीं पृथ्वी भीतर से उबलते ज्वालामुखी, बिखरती प्लेटें और भावनाओं-सी उथल-पुथल से भरा एक जीवंत अंग–मानव जीवन की जननी बनी है। पृथ्वी की पर्पटी अनेक उथल-पुथल से गुज़रती रहती है: कभी प्लेट टेक्टोनिक्स की चढ़ाई, कभी सबडक्शन के गर्तों की खाई, और इन सबके बीच उठते-गिरते भूकंप और फटते ज्वालामुखी, जैसे जीवन की अस्थिर लय को निरंतर गूँजाते हैं।
पृथ्वी की यह भूगर्भीय नृत्य-धुन नई पर्वत शृंखलाएँ रचती है, महासागरों में दरारें खोलती है, और मानव जाति को जीवन के नए आयामों की याद दिलाती है। इन गतिविधियों की जटिलता को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर एक विस्तृत सीस्मिक नेटवर्क बिछाया है, और भूभौतिकीय उपकरणों के मद्देनज़र गहरे कोर की परतें आकांक्षा करती हैं। GPS सैटेलाइट्स की सूक्ष्म ट्रैकिंग और रिमोट सेंसिंग की दबंग दृष्टि ने भूकंपीय हलचलों को सेंटीमीटर-दस सेंटीमीटर तक मापना संभव किया। इसी तरह, चंद्रमा पर भी हम शेष मूनक्वेक्स की फुसफुसाहट तक पहुँचने के लिए अपोलो मिशनों में लगाए गए सीस्मोमीटरों की ओर देखते हैं। वे कोमल इलेक्ट्रिकल तरंगें, जो चंद्र की हल्की काँप से जन्मी, हमारे चरण-कदमों तक पहुँचती हैं, और भविष्य में लूनर सीस्मिक नेटवर्क हमें चाँद की भीतरी धड़कनों को और अधिक स्पष्टता से सुनने का अवसर देगा।
चंद्रमा और पृथ्वी—दोनों की भूगर्भीय कविता हमें सिखाती है कि जीवन की नींव केवल सतह की चमक में नहीं, बल्कि भीतर के आवेगों और स्थिरता के संयोग में होती है। युवा बुद्धि, जब तुम चंद्रमा का शांत कंपकंपी अनुभव करो और धरती के गर्जन भूकंपों की गूँज सुनो, तब समझना कि यह अंतरिक्षीय तालमेल ही जीवन की अन्तःलहरी है—जो हमें सदा बाँधे रखती है, चाहे हम चाँद की चादर पर खड़े हों या पृथ्वी की कोमल धरा पर कदम टिकाएँ।