धरती के मौसम से अंतरिक्ष मौसम से होते हुए चन्द्रमा तक की राकेट की यात्रा

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जब सुबह की पहली किरण धरती के क्षितिज से उठकर आसमान में खिलती है, तो एक रॉकेट भी अपने इंजन के गगनभेदी गर्जन के साथ गर्भनाल–गुरुत्वाकर्षण रेखा को पार करता है। ट्रोपोस्फीयर की गाढ़ी वायु जैसे कोमल कंबल है, जो रॉकेट के चारों ओर तन जाती है। लॉन्च के क्षण में, रॉकेट मैक्स‑क्यू—वायु दबाव के चरम—में फिसलता हुआ ऊपर चढ़ता है; तेज हवाएँ या अचानक बूँदें उसे क्षणिक रूप से थाम लें, पर मौसम के वैज्ञानिक विश्लेषण की चाबी हर बार उसके पथ को खोल देती है। 20 किलोमीटर की ऊँचाई पार करने पर रॉकेट स्ट्रैटोस्फीयर के सफेद-नीले आंचल में प्रवेश करता है। यहाँ ओज़ोन की महीन परत सूर्य की तीव्र किरणों को रोकते हुए एक कोमल सुरक्षागृह बनाती है, और हवा इतनी पतली—जैसे चाँदी की धुँधली चादर—कि अब घर्षण कम, गति अधिक महसूस होती है। यहीं निर्माण इंजीनियरिंग की सूक्ष्म सजगता काम आती है, जो ऊँची रफ्तार में भी संरचनात्मक अवशेषों को स्थिर बनाए रखती है।

आगे बढ़कर मेसोस्फीयर का अद्भुत मैली-नीला आकाश मिलता है, जहाँ उल्काएँ स्वर्ग से टकराकर रेशमी धुंध बनाती हैं। तापमान गिर चुका होता है—लगभग –९० °C तक—पर चुनौती केवल कुरकुरी ठंड नहीं, बल्कि तेज़ तापांतर भी है, जैसे चाँदनी रात की सरसराहट और अग्नि की चुभन का मेल। जब रॉकेट साढ़े ८० किमी से ऊपर पहुँचता है, तो थर्मोस्फीयर और एक्सोस्फीयर की सीमा उसे अंतरिक्ष के बाहुल्य से मिला देती है। यहाँ सौर वायु—सूर्य से बहती आवेशित कणों की कोमल धारा—उसके चुम्बकीय आवरण से टकराकर प्लाज़्मा ड्रैग उत्पन्न करती है। अचानक तापमान में कई सौ डिग्री का उछाल उसकी बाहों को झकझोरता है, जैसे उजाले और अँधेरे की दोहरी जादूगरी।

एक बार लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में पैर रखते ही, पृथ्वी की मैग्नेटोस्फीयर उसका कवच बन जाती है। पर यहाँ भी खतरे हैं—माइक्रोमीटियोरॉयड्स के नन्हे-नन्हे टुकड़े और मानव निर्मित अवशेष क्षुद्र क्षति पहुँचा सकते हैं। रॉकेट या चालक दल के लिए यह वह क्षण होता है जब वे अगले ट्रांज़‑लूनर इंजेक्शन की तैयारी में, क्षणिक रूप से धरती की परिक्रमा में विलीन हो जाते हैं। फिर आता है वान एलेन विकिरण बेल्ट्स का दायरा—दो प्रचंड रेडिएशन धाराएँ जो पृथ्वी के चुंबकीय जाल में फँसी होती हैं। यहाँ रॉकेट को अपने इलेक्ट्रॉनिक्स बचाने के लिए भारी चादर-जैसे शील्ड्स से ढकना पड़ता है, अन्यथा सोलर स्टॉर्म या कोरोनल मास ईजेक्शन में चुटकी भर में विघटन हो सकता है।

काफी दूरी के बाद हम सिस‑लूनर स्पेस में प्रवेश करते हैं—वह विशाल अंतर जहाँ पृथ्वी की खींचन क्षीण होती है और चाँद की कोमल बाँहें बुलाती हैं। यहाँ सौर विंड की गूँज, कॉस्मिक किरणों का नर्तन, और दिशाहीन माइक्रोमीटियोरॉयड्स का मधुर-भंवर साथ चलता है। ट्रांज़िशन जोन से गुजरते हुए रॉकेट दो ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण की नाजुक संतुलन रेखा पर खुद को संरेखित करता है—गुरुत्व का अद्भुत जादू दिखाता हुआ। अंततः चंद्रमा की इन्फ्लूएंस स्फीयर में प्रवेश करते ही रॉकेट को ऑर्बिटल इंजेक्शन की कोमल मशाल थामनी पड़ती है। अब कोई मैग्नेटोस्फीयर नहीं बची, और सोलर विकिरण सीधे तार-तार कर सकता है। फिर भी, सफल इंजेक्शन के बाद चंद्रमा की गोद में रॉकेट को अस्थायी विश्राम मिलता है—जैसे आत्मा को पल का सहारा। इसके बाद लूनर डिसेंट एक कोमल नज़ाकत है: थ्रस्टर्स की मंद पुकार, रेगोलिथ की धूल में धीमी मेहरबानी, और चंद्र दिन-रात के चरम तापमान की पुकार। नरम लैंडिंग के क्षण में यान ज़मीन पर इतिहास के नए अक्षर उकेरता है—जहाँ रोबोट हों या मानव, चाँद की निर्जन चादर पर एक नया अध्याय शुरू होता है।

युवा साथियों, इस कथा में यंत्रों की नहीं—हमारी वैज्ञानिक जिज्ञासा और तकनीकी सौंदर्य की गूँज है। धरती की मोहक सीमा से चाँद की खामोशी तक, यह सफर हमें सिखाता है: चुनौतियाँ कोमल हों या भयंकर, केवल विश्वास और समझ ही हमें अंतरिक्ष की अनंतता में आगे बढ़ने का साहस दे सकती हैं।

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